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लेखनी कहानी -13-Jan-2022 मां, बीवी और मैं

मां , बीवी और मैं

मेरी शादी को एक महीना हो गया था । संध्या मेरी पत्नी पढ़ी लिखी , ऊंचे  घराने की और थोड़े आधुनिक विचारों की है जबकि मेरी मां थोड़ी पुराने विचारों वाली है । मुझे पता है कि मेरी मां ने मुझे कैसे पाला , पढ़ाया और अफसर बनाया है ।मुझे अफसर बनाने के लिये उसने कितने पापड़ बेले हैं ।  आज मेरे रुतबे के कारण ही संध्या के पिता ने हमारे साथ रिश्ता किया था नहीं तो एक आई ए एस की इंजीनियर बेटी को रिश्तों की कोई कमी तो नहीं थी । 

मां की सोच है कि जब मैं अच्छी खासी नौकरी कर रहा हूं तो बहू को घर में ही रहना चाहिए । नौकरी करने के बजाय घर संभालना चाहिए उसे ।  कितना पैसा चाहिए घर चलाने के लिए ? घर सरकारी। नौकर सरकारी। गाड़ी सरकारी । और क्या चाहिए ? जब सब कुछ है तो फिर बहू को नौकरी करने की क्या जरूरत है ?

संध्या की सोच है कि घर में काम करने वाले इतने नौकर हैं । मुझे तो कुछ करना नहीं है केवल खाना बनाने का काम है । दिन भर घर में बोर होती है वह । फिर , इतनी बड़ी डिग्री है तो उसका सम्मान किया जाये और काम करके देश की सेवा की जाए ।‌ इससे उसके ज्ञान का सदुपयोग भी हो जायेगा, कुछ पैसे भी मिलेंगे और लोगों से मिलना जुलना भी होता रहेगा ।इसलिए काम करने में बुराई क्या है ?

मां ऐसा नहीं सोचती थी । दोनों में टकराव की नौबत आ रही थी । थोड़ा सा तनाव भी व्याप्त हो गया था घर में । मैंने इस पर बहुत सोचा कि मुझे क्या करना चाहिए ? ज्यादातर पति मां की इच्छा को वरीयता देते हैं । लेकिन पत्नी होने का यह मतलब तो नहीं है कि उसकी इच्छाओं की कोई कद्र ही नहीं की जाये । दोनों के मध्य संतुलन बनाना चाहिए । पति का काम है दोनों में सामंजस्य बैठाना ।  मैंने निश्चय कर लिया कि मैं सच का साथ दूंगा । अर्थात जो बात  सही होगी बस उसी का साथ दूंगा । वो बात चाहे मां की हो या पत्नी की । 

संध्या को मैंने हरी झंडी दे दी कि वह अपना काम जारी रख सकती है और मां के पैर दबाते हुए मां को भी समझाया कि अब जमाना बदल गया है । घर में कोई विशेष काम तो है नहीं इसलिए घर में बैठे बैठे बोर होने के बजाय कुछ काम करेगी तो अपनी पढ़ाई के साथ न्याय भी कर सकेगी । नये नये लोगों से मिल सकेगी । अपनी पहचान बना सकेगी । फिर घर की आमदनी भी तो दुगनी हो जायेगी ना । आजकल बच्चों की पढ़ाई लिखाई में बहुत पैसा खर्च होता है । मैं तो सरकारी स्कूल में पढ लिया था जिसमें कोई खर्च नहीं होता था मगर अब तो बच्चों को कोचिंग भी करानी पड़ती है और अच्छे स्कूल में एडमिशन के लिए भारी भरकम फीस भी देनी पड़ती है ।

एक मां अपने बच्चों से कब तक नाराज़ रहेगी ? बस मैंने इसी का फायदा उठाया । संध्या को भी यह बात अच्छी तरह समझा दी थी कि जो सही बात होगी मैं उसी का साथ दूंगा वो चाहे मां की हो या तुम्हारी । कोई भी बात जो तुम्हें अच्छी नहीं लगे, उस पर कोई रिएक्ट करने से बचना और मुझे बता देना फिर मैं संभाल लूंगा । और इस तरह एक अलिखित संधि हो गई थी घर में । धीरे धीरे संध्या मां को जानने लगी और मां संध्या को पहचानने लगीं । एक साल में तो वे दोनों ऐसे घुल-मिल गई जैसे वे सास बहू नहीं होकर मां बेटी हों । 
फिर तो वे दोनों एक हो गयी ।

अब घर में लड़ाई नहीं षड्यंत्र होते हैं मेरे विरुद्ध । संध्या ने मां को ऐसा पटाया कि दोनों एक तरफ और मैं बेचारा अकेला एक तरफ । हाय , बेचारा मर्द । दोनों सास बहू (अब मां बेटी)  मिलकर कीमा बना रहीं हैं मेरा । साथियों , आप लोगों से ही कुछ उम्मीद है । बचा सको तो बचा लो दो नारियों से

😀😀😀


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7 Comments

sunanda

01-Feb-2023 03:15 PM

very nice

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Seema Priyadarshini sahay

20-Jan-2022 09:07 PM

😁😁अच्छी रचना

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Jan-2022 09:34 PM

धन्यवाद जी

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Niraj Pandey

13-Jan-2022 08:28 PM

🤣🤣🤣 इस षड्यंत्र से तो बचना मुश्किल ही है😅😅😅

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Jan-2022 09:47 PM

😀😀😀🙏🙏🙏

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